कितना मुश्किल होता है किसी को ये समझाना की अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है और ज़रूरी नहीं की अंग्रेजी जानने वाला हर इंसान उसमे पारंगत हो। पता नहीं क्यों मगर ९०% (शायद प्रतिशत गलत हो) भारतीयों को अंग्रेजी बोलने का बुख़ार सा है। आज से करीब १५ साल पहले मैं जब मुंबई अपने चाचा जी के घर कुछ दिन छुट्टियाँ बिताने गया था तो उनके अडोस पड़ोस का माहौल देख कर अचंबित रह गया था। चाचा जी की पड़ोसन अपने दो-ढाई बरस के बालक से हिन्दी अथवा मराठी में नहीं अपितु अंग्रेजी में बात किये जा रही थी और शायद बच्चे से जवाब भी अंग्रेजी में ही चाहती थी। मैं देख रहा था और बच्चा बेचारा डांट खाए जा रहा था । तब से अब तक मुझे कुछ खास परिवर्तन नहीं दिखा, हाँ अंग्रेजी में बात करने वालों की तादाद में इजाफा ज़रूर हुआ है।
मुझे स्वत: अंग्रेजी से कोई बैर नहीं है मगर जब मैं देखता हूँ की लोग आपसे कहे की अगर तुम्हे ठीक से अंग्रेजी नहीं आती तो तुम्हे कुछ नहीं आता तो बहुत अटपटा लगता है। जब लोग कहते है की थोड़ी सी अंग्रेजी सुधार लो तरक्की मिल जायेगी तो असमंजस में पड़ जाता हूँ की मेरी तरक्की मेरी काबिलियत पर नहीं किन्तु एक बाहरी भाषा पर टिकी हुयी है कि जो मुझे आ जाए तो बस वारे न्यारे हो जाए। अब ऐसा भी नहीं है हम अंग्रेजी में बिलकुल ही अंगूठा छाप हो, बचपन से सीख रहे है तो इतनी तो आती ही है की कभी अमरीका या यूरोप जा के अगर खो जाए तो अपने घर तक रास्ता खोज लेंगे, मगर नहीं लोगो को इतने में संतोष कहाँ ।
एक और बात जो मुझे खलती है वो ये की जब ये फ़र्राटे दार अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय मुझसे कहते है की अंग्रेजी उन्नत देशो की भाषा है, उन्नती की निशानी है तो मैं उनसे पूछना चाहता हूँ की क्यों भाई क्या चीन, जापान, कोरिया भारत की अपेक्षा कम उन्नत देश है? और अगर वो हमसे उन्नत है तो मैंने तो कभी नहीं सुना की इन राष्ट्रों में अंग्रेजी का इतना महत्व है। आज भी यहाँ के नेता जब किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में हिस्सा लेते है तो दुभाषियों का उपयोग करते है फिर हम ही क्यों अंग्रेजी की धोती को चादर बना कर पसार रहे है, अगर किसी को अंग्रेजी नहीं आती या उसके उच्चारण में कोई त्रुटी है तो इसमें गलत क्या है। अंग्रेजी हमारी मातृभाषा तो नहीं है और कम से कम अंग्रेजी बोल तो लेते है। किसी अंग्रेज़ को सुना है की उसने कोशिश की हो आपसे हिन्दी में बात करने की।
खैर, ये तो हर इंसान की निजी सोच होती की वो अपने जीवन में किसे प्राथमिकता दे। अगर किसी को लगता है की अंग्रेजी के बिना उसका गुज़ारा नहीं हो सकता तो ये उसकी निजी राय है, मेरा उससे कोई सरोकार नहीं किन्तु अगर कोई अगर मुझसे आकर कहे की भैया अपनी अंग्रेजी सुधारों तो मैं ऐसे महानुभावों से कहना चाहता की क्या आपने कभी "महादेवी वर्मा", "गोपालदास 'नीरज'", "हरिशंकर परसाई", "रामधारी सिंह 'दिनकर'", "दुष्यंत कुमार", "सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'" जैसे व्यक्तिवों की कोई रचना, कोई कविता, कोई गद्य पढ़ा है, या इनका नाम भी कभी सुना है? अगर नहीं तो मुझसे ज्यादा भाषा के ज्ञान की ज़रूरत आपको है क्यों की मैं तो फिर भी एक विदेशी भाषा में कमज़ोर हूँ मगर आप हमारे अपने देश में २२ मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक में कमज़ोर है।
अगर मैंने अपने वक्तव्यों से किसी को, किसी भी प्रकार की कोई चोट पहुँचाई हो अथवा उनकी विचारधारा पे कोई आक्षेप किया हो तो मैं उनसे हाथ जोड़कर क्षमा मांगता हूँ। इस लेख से मेरा औचित्य किसी को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाने का नहीं है बस इतना कहना चाहता हूँ अंग्रेजी मात्र एक भाषा है और उसे भाषा ही रहने दे इंसान की पहचान ना बनाए।
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